Skip to main content

नास्तिकों के दावो का खंडन

बौद्ध मत में जड़पूजा और अंधविश्वास

 

 कार्तिक अय्यर
( १८/७/१८)

।।ओ३म्।।
नमस्ते मित्रों! आजकल राजेंद्र प्रसाद सिंह आदि अंबेडकरवादी लेखक फाहियान और ह्वेनसांग नामक बौद्ध विदेशी यात्रियों के यात्रा वृत्तांतों की बात करते हैं। पर इनको पढ़ने से उस समय बौद्ध मत में प्रचलित जड़पूजा,अंधविश्वास और अवैज्ञानिक पाखंडी बातों की पोल खुल जाती है।
बौद्धों का अपने मत को वैज्ञानिक कहना ही सबसे बड़ा झूठ है। हमारे पास ब्रजमोहनलाल वर्मा की पुस्तक "फाहियान और हुएनसंग की भारत यात्रा" नामक पुस्तक रखी है। उसी पुस्तक से इस विषय पर कुछ प्रमाण देते हैं। हमने संक्षेप में उनके लेख का सार दे दिया है। विस्तार से वर्णन पुस्तक में देख सकते हैं।
पाठकगण! पुस्तक के उद्धरण और उस पर हमारी समीक्षा पढ़कर आनंद लें-
१:- बुद्ध के टूटे दांत की पूजा-
यहां बुद्धदेव की एक निशानी है-वो है पत्थर का पीकदान! यहां पर बुद्ध का एक टूटा हुआ दांत है,जिस पर लोगों ने स्तूप बना दिया। इसके पास प्रायः १००० भिक्षु रहते हैं।यहां हीनयान मत का अधिक प्रचार है।
( पेज १० पैराग्राफ २)
समीक्षा- वाह रे जड़पूजकों! पीकदान और टूटे दांत तक की पूजा करते हो और हिंदुओं को पाखंडी मूर्तिपूजक कहते हो! ये तो ऐतिहासिक बात है, अब यहां तो किसी ब्राह्मण ने मिलावट नहीं की।
२:- बौद्धों का स्वर्ग और मैत्रेय बुद्ध की मूर्तिपूजा-
प्राचीन काल में एक अर्हत निवास करता था। उसके पास अलौकिक शक्तियां थीं। वो अपनी शक्ति से तुषित नामक स्वर्गलोक में गया। वहां वो अपने साथ विश्वकर्मा को ले गया, जिसने भावी बुद्ध, मैत्रेय बुद्ध की मूर्ति बनाई। मूर्ति लकड़ी की थी, और कुछ विशेष तिथियों में इनसे प्रकाश निकलता था। चारों ओर से राजा इस मूर्ति की प्रतिष्ठा करने आते थे।
( अध्याय ७ पेज ११ पैराग्राफ ३,४)
समीक्षा- अब बौद्धों के स्वर्ग और विश्वकर्मा देवता भी निकल आये! हिंदुओं के स्वर्ग नरक को पाखंड कहते हैं, और यहां खुद "तुषित लोक" नामक स्वर्गलोक मान रहे हैं। इस स्वर्ग से वो अर्हत विश्वकर्मा को ले जाकर मूर्ति बनाता है। इस स्वर्गीय मूर्ति की पूजा राजा करता है। और लकड़ी की मूर्ति से प्रकाश निकल रहा है- वाह वाह! पता नहीं मूर्ति लकड़ी की बनी है, या रेडियम की है। हो सकता है ग्लिटर से उसको चमकाया जाता हो! हम आज ये स्वर्गीय प्रकाशवाली मूर्ति देखना चाहते हैं।
३:- बुद्ध के पांव का चमत्कारी चिह्न-
सिंधु नदी के पास बूचांग देश में जब फाहियान आया, तब उसने देखा कि यहां सर्वत्र बौद्ध मत व्याप्त है। वहां एक कहानी प्रचलित है, जो है-
गौतम बुद्ध इस जगह पर आये थे। वहां अपने पांव की छाप छोड़कर गये थे। जिज्ञासु लोगों के देखने से वो पैर का चिह्न बढ़ और घट सकता था। ये चमत्कार आज भी होता है।
(अध्याय ८ पेज १३ पंक्ति १०)
समीक्षा- एक और नायाब गप्प सुनिये! बुद्ध के पांव का निशान बढ़ता और घटता है! यदि ऐसे गपोड़े न हांके होते, तो बौद्धों के मत को आम जनता स्वीकार कहां करती?
४:- बुद्ध के पूर्वजन्म की बातें-
"शू-हो-तो" नामक एक देश में पहुंचकर फाहियान वर्णन करता है कि यहां पर भी बौद्ध मत व्याप्त है। यहां पर वो कहता है कि अपने पूर्वजन्म में बुद्धसत्व के रूप में बुद्ध ने अपना मांस काटकर एक बाज़ को खाने को दे दिया था। दरअसल वो बाज़ इंद्र ही था जो बुद्ध की परीक्षा ले रहा था।जब उनके शिष्यों को यह बात पता चली,तो वहां एक स्तूप बना दिया।
( अध्याय ९ पेज १४)
समीक्षा- ये कथा तो महाभारत और पुराणों के रंतिदेव से मिलती है। सुनते हैं कि एक बार इंद्र ने बाज़ बनकर रंतिदेव के शरीर का मांस मांग लिया था। सनातन धर्म में ये कथा बहुत प्रचलित है।इस कथा को कॉपीपेस्ट करके बुद्धुओं ने गौतम बुद्ध पर घटा लिया! सचमुच, कॉपीपेस्ट करना इनके यहां सदियों से है!
५- गांधार देश के वर्णन कहते हुये कहता है कि यहां बुद्धदेव ने अपने पिछले जन्म में दूसरों के कल्याण के लिये नेत्रदान किया था। इस खुशी में उनके अनुयायियों ने वहां भी स्तूप बना दिया।
( अध्याय १० पेज १४)
समीक्षा- ये भी ऊपर जैसी ही मनगढंत बात है। बुद्ध जी नेत्रदान करे या मांस का दान, हमारे टकलू बौद्ध भिक्खु स्तूप बनवाकर जड़पूजा करने में कहीं नहीं चूकते थे!
६- छेदितमस्तक बुद्ध
तक्षशिला का वर्णन करके कहता है कि इस नगर को चीनी भाषा में "छेदितमस्तक" कहते हैं। यहां पर बुद्ध ने पूर्वजन्म में बुद्धसत्व की दशा में अपना सिर काटकर एक व्यक्ति को दान कर दिया था। इसलिये इस जगह का नाम "तक्षशिला" पड़ा।
साथ ही, एक जगह यहीं पर पूर्वजन्म में बुद्धसत्व की दशा में बुद्ध ने एक शेरनी को अपना शरीर दान कर दिया था। यहां पर भी चार स्तूप बने हैं, जिनको महास्तूप कहते हैं। दूर दूर लोग यहां दीप जलाने व फूल चढ़ाने आते हैं।
( अध्याय ११ पेज १५)
समीक्षा- ऊपर जैसी ही गप्पकथा है। जब देखो स्तूप ही बनाकर उस पर दीपक जलाना और फूल चढ़ाना आदि करते आये हैं। पर हिंदुओं के ऐसा करने पर इनको पाखंड लगता है!
७:- भीख के कटोरे की पूजा!
पुरुषपुर (पेशावर) का वर्णन- करते हुये लिखा है कि उस देश में गौतम बुद्ध की "भीख का कटोरा" ( भिक्षापात्र) रखा था। इसलिये एक अन्य बौद्ध मत वाला राजा उस देश पर आक्रमण करता है और कटोरे पर कब्जा कर लेता है। पर जब वो एक हाथी पर रखकर भिक्षापात्र को उठवाता है, तो उसके बोझ से हाथी चल नहीं पाता! फिर वो आठ हाथियों से एक रथगाड़ी में कटोरे को खिंचवाता है। पर फिर भी भिक्षापात्र खिंच न सका!
उस राजा को पता चला कि उसके कर्म इतने पवित्र नहीं है कि वो भिक्षापात्र को उठा सके। पर वो वहां एक स्तूप व संघाराम बनवा देता है। इस संघाराम में ७०० भिक्षु रहते व मध्याह्न काल में भिक्षापात्र को निकालकर उसकी पूजा करते। भिक्षापात्र की पूजा के बाद ही भोजन ग्रहण करते। संध्याकाल में भी यही होता।
( पेज १६ पैराग्राफ २,३)
समीक्षा- और सुनिये बुद्ध के "भीख के कटोरे" की कहानी! पता नहीं कटोरा था या पहाड़ था, जिसे आठ हाथी भी न सकें! यहां पर फिर वो राजा स्तूप बनवाता है और हमारे भिक्षु रोज सुबह शाम खाने के पहले वो "भीख का कटोरा" पूजते हैं,फिर भोजन करते हैं। उसके बिना इनका खाना न पचता होगा!!
८:- बुद्ध के सर की हड्डी!
पाक्यून और सांग किंग नामक फाहियान के साथी इस भिक्षापात्र का दर्शन पूजन और प्रतिष्ठा की। फाहियान फिर आगे बढ़ा जहां पर बुद्ध की खोपड़ी की हड्डी रखी हुई थी।
( अध्याय १२ पेज १७)
९:- एक हीलो देश में फाहियान पहुंचा जहां पर एक "नगरक्षेत्र" नामक स्थान पर बुद्ध कि मूर्ति है। वहां पर मूर्ति चोकी न हो जाये इसलिये राजवंश के ८ खास आदमी चुनकर रखे गये हैं।
प्रातःकाल में आठ रक्षक द्वार खोलते हैं। सप्तरत्न जटित गोलाकार सिंहासन पर बुद्ध के सर की हड्डी को रखा जाता है। फिर ऊंचे मंच पर चढ़कर ढोल नगाड़े आदि बजाकर राजा को बुलाते हैं। राजा उसका पूजनादि करता है और नैवेद्य चढ़ाता है। तदुपरांत वे और कर्मचारी गण हड्डी को सिर तक ले जाकर उसे प्रणाम करते हैं। बाद में बाकी नागरिक उसकी पूजा करते हैं। पुष्प और सुगंध बेचने वालों का तांता-सा लगा रहता है, उनकी खूब बिक्री होती है।
( अध्याय १३ पेज १८)
समीक्षा- यहां पर जड़पूजा का पाखंड तो पाठकों ने देख ही लिया होगा! कभी बुद्ध के दांत की पूजा करते हैं, कभी खोपड़ी की हड्डी की! क्या बौद्धों ने बुद्ध के शरीर की सारी हड्डियां तोड़कर ही स्तूप बनवाये हैं?
यहां पर राजा और अन्य लोग हड्डी को फूल फल सुगंध आदि से पूजन करते हैं। यहां प्रसाद भी चढ़ाया जाता है हड्डी पर! और हिंदू लोग अपनी मूर्तियों पर ये सब चढ़ा लें तो पाखंड हो गया!
इस तरह से फाहियान व ह्वेनसांग के लेखों में बौद्ध मत के नाम पर अनेक असंभव चमत्कार, गप्पें, जड़पूजा की बातें आदि हैं। ये पूरी तरह से अनैतिहासिक हैं।
राजेंद्र प्रसाद सिंह आदि बौद्ध मत के नेता त्रिपिटक में तो मिलावट मानते हैं, पर क्या फाहियान और ह्वेनसांग का इतिहास भी मिलावटी मान लेंगे? क्यों नहीं सत्य को स्वीकार कर लेते कि बौद्ध मत में अखंड अंधविश्वास और पाखंड है? क्यों नहीं वेद की शरण में आ जाते?
ये हमने केवल हल्की सी झांकी दिखाई है, दरअसल इन गप्पों की लिस्ट बहुत बड़ी है!
पुस्तक के पीडीएफ का लिंक देते हैं। पाठकगण यहां जाकर डाउनलोड कर सकते हैं:-
*फाहियान और ह्वेनसंग की भारत यात्रा*

Comments

  1. महापंडित राहुल सांकृत्यायन .....

    जाने-माने बौद्ध महापंडित राहुल सांकृत्यायन को भी लगता है कि बुद्ध की मूल बात पर बदलाव हुआ है। विनय पिटक के अपने हिंदी अनुवाद की प्रस्तावना में 'मूल बुद्धवचन' शीर्षक में वे लिखते हैं, “त्रिपिटकमें कुछ गाथाओंके प्रक्षिप्त होने की बात तो पुराने आचार्योंने भी स्वीकार की है। मात्रिकाओंको छोड़ सारा अभिधर्म पिटक ही पिछेका का है,..... 
    ”फिर प्रश्न यह उठता है कि क्या संपूर्ण सुत्त पिटक और विनय पिटक बुद्ध के वचन हैं। मज्झिम निकाय के प्रवचनों में घोटमुख सुत्तन्त की भाँति कितने तो स्पष्ट ही बुद्धनिर्वाण के बादके हैं।
    ... सुत्त पिटक में आई वह सभी गाथायें, जिन्हें बुद्धके मुखसे निकला उदान नहीं कहा गया, पिछेकी प्रक्षिप्त मालुम होती हैं। इनके अतिरिक्त भगवान बुद्ध और उनके शिष्योंकी दिव्य शक्तियाँ, ईश्वर, आत्मा, असुर, भुत-प्रेत, स्वर्ग और नरक की अतिशयोक्तिपूर्ण कथाओंको भी प्रक्षिप्त माननेमें कोई बाधा नहीं हो सकती। "
    अपने 'बुद्धचर्या' के हिंदी अनुवाद प्रस्तावना में, महापंडित राहुल सांकृत्यायन कहते हैं, "कोई कोई निकाय आर्यस्थविरोंकी तरह बुद्धको मनुष्य न मानकर उन्हें लोकोत्तर मानने लगे। वह बुद्ध मेँ अदभुत और दिव्य-शक्तियोंका होना मानते थे। कोई-कोई बुद्धके जन्म और निर्वाणको दिखावा मात्र समझते थे।
    इन्ही भिन्न-भिन्न मान्यताओंके अनुसार उनके सूत्र विनयमें भी फर्क पड़ने लगा। बुद्धकी अमानुषिक लीलाओंके समर्थनमें नये-नये सुत्रोंकी रचना हुई। 
    एक बार जब हम स्वर्ग, नरक, देवताओं, चमत्कारों, आदि के बारे में पंडित राहुल द्वारा दिए गए दृष्टिकोण को समझते हैं और ध्यान में रखते हैं; पिटक में दिए गए विभिन्न अनुवादों जैसे ईश्वर-देव, ब्रह्मा, भुत-प्रेत, स्वर्ग, नरक, चमत्कार आदि का उल्लेख करते हुए हम चौंकेंगे नहीं। यदि हम महापंडित राहुल सांकृत्यायन के दृष्टिकोण को स्वीकार करते हैं, तो हमें इन अवधारणाओं का उल्लेख होने पर हर मोड़ पर स्पष्टीकरण देने की आवश्यकता नहीं है।

    REPLY
    1. वेदों की ओर लौटो

  2. The Buddha Banned Miracles.....

    The Buddha didn’t perform miracles, didn’t teach how to perform miracles and had banned miracles. This is clear from an incident in Vinaya Piṭaka.
    Once the Buddha was staying in Kalandakanivāpa of Rājagaha. At that time, a merchant acquired an expensive piece of sandal-wood. He made a bowl out of it so that he could use the sandal wood powder and give away the bowl in charity. He then put the bowl in a basket and suspended the basket at the top of a bamboo pole. He tied it atop another long bamboo to raise its height. Then he declared, “Whoever Samaṇa or brāhmaṇa is an arahata or has miraculous powers, this bowl is gifted to him. Let him take it down.” Some who had claimed supernatural powers couldn’t take it down.
    At that time, Venerable Mahāmoggallana and Piṇḍola Bhāradvāja had entered Rājagaha for alms. Bhāradvāja told Moggallāna to take the bowl down since he was an arahata and had supernatural powers. But Moggallāna replied, “You do it.” Then Bhāradvāja rose in the sky, plucked the bowl from the top of the bamboo and circled around Rājagaha in the sky thrice. The merchant was standing with his wife and children near his house. He requested the bhikkhu to come down there. When the bhikkhu landed, he took the bowl and filled it with choice foods. Bhāradvāja then set out for the monastery. People started walking behind him, loudly discussing his miraculous feat. Hearing the commotion, the Buddha asked Ānanda about it.
    Then the Buddha called Bhāradvāja and the bhikkhu Saṅgha. He asked Bhāradvāja whether what he had heard was true. Bhāradvāja said yes.
    Then the Buddha condemned him, “Bhāradvāja, this was wrong, this was improper, this was unbecoming. This was not suitable for a samaṇa. This should not be done. Bhāradvāja, how could you show a miracle for wooden bowl? This was like mātugāma (woman) shedding her clothes for a small coin. This wouldn’t make one who has no faith develop faith…”
    Then he gave a Dhamma discourses and told bhikkhus, “Whoever showed miracle to laypeople will be guilty of transgression. Bhikkhus, break the pot in pieces and distribute it among bhikkhus.”
    Then he banned bowls made of wood, gold, silver, copper, etc. He allowed bhikkhus only iron and earthen alms bowls.

    REPLY
    1. बुद्ध ने चमत्कारों पर प्रतिबंध लगा दिया ....।

      बुद्ध ने चमत्कार नहीं किया, यह नहीं सिखाया कि चमत्कार कैसे करना है और चमत्कार पर प्रतिबंध लगा दिया है। यह विनया पिआका की एक घटना से स्पष्ट है।
      एक बार बुद्ध राजगृह के कलंदकानिवपा में ठहरे हुए थे। उस समय, एक व्यापारी ने चप्पल-लकड़ी का एक महंगा टुकड़ा हासिल कर लिया। उसने इसमें से एक कटोरा बनाया ताकि वह चंदन की लकड़ी के पाउडर का उपयोग कर सके और कटोरा दान में दे सके। फिर उन्होंने कटोरे को एक टोकरी में रख दिया और टोकरी को एक बांस के खंभे के ऊपर निलंबित कर दिया। उसने इसकी ऊँचाई बढ़ाने के लिए इसे एक और लंबे बाँस के ऊपर बाँध दिया। तब उन्होंने घोषणा की, “जो कोई भी श्यामा या ब्राह्मण है वह आराध्या है या उसके पास चमत्कारी शक्तियां हैं, यह कटोरा उसे उपहार में दिया गया है। उसे नीचे ले जाने दो। ”जिन लोगों ने अलौकिक शक्तियों का दावा किया था, वे इसे नीचे नहीं ले जा सकते।
      उस समय आदरणीय महामोगलाना और पिओला भारद्वाज ने भिक्षा के लिए राजगृह में प्रवेश किया था। भारद्वाज ने कहा कि जब वह अराथात थे और उनकी अलौकिक शक्तियां थीं, तब उन्होंने मोगलगन्ना को कटोरा लेने के लिए कहा। लेकिन मोगलगन्ना ने उत्तर दिया, "आप इसे करते हैं।" तब भद्रवजा आकाश में उठी, बांस के ऊपर से कटोरे को लटकाया और तीन बार आकाश में रजाघर की परिक्रमा की। व्यापारी अपने घर के पास अपनी पत्नी और बच्चों के साथ खड़ा था। उन्होंने भिक्खु से वहाँ आने का अनुरोध किया। जब भिक्खु उतरा, उसने कटोरा लिया और उसे पसंद के खाद्य पदार्थों से भर दिया। फिर भारद्वाज मठ के लिए निकल पड़े। लोग उसके पीछे चलने लगे, जोर-जोर से उसके चमत्कारी पराक्रम की चर्चा करने लगे। हंगामा सुनकर, बुद्ध ने इसके बारे में पूछा।
      तब बुद्ध ने भारद्वाज और भिक्खु साग को बुलाया। उन्होंने भारद्वाज से पूछा कि क्या उन्होंने जो सुना था वह सच था। भारद्वाज ने कहा हां।
      तब बुद्ध ने उनकी निंदा करते हुए कहा, "भारद्वाज, यह गलत था, यह अनुचित था, यह असहनीय था। यह समाधि के लिए उपयुक्त नहीं था। ऐसा नहीं करना चाहिए। भारद्वाज, आप लकड़ी के कटोरे के लिए चमत्कार कैसे दिखा सकते हैं? यह माटुगमा (महिला) की तरह था जिसने एक छोटे सिक्के के लिए अपने कपड़े उतारे। यह ऐसा नहीं होगा जिसके पास कोई विश्वास नहीं है जो विश्वास को विकसित करता है… ”
      तब उन्होंने एक धम्म प्रवचन दिया और भिखमंगों से कहा, "जिसने भी आम लोगों को चमत्कार दिखाया है, वह अपराध का दोषी होगा। भीखू, पॉट को टुकड़ों में तोड़कर भिक्खुओं के बीच वितरित करें।
      फिर उन्होंने लकड़ी, सोना, चांदी, तांबा, आदि से बने कटोरे पर प्रतिबंध लगा दिया। उन्होंने भिक्खुओं को केवल लोहे और मिट्टी के कटोरे की अनुमति दी।

  3. Discussion.....

    Without going into the exact nature of Bhāradvāja’s miracle, let us just understand how firmly and how strongly the Buddha opposed miracles. The words he uses to censure Bhāradvāja convey his strong view on this matter. He compared the act of Bhāradvāja with the action of a woman of loose character. Even then he didn’t show disrespect for the woman. He calls her mātugāma (literally one of mother’s gender). He differentiates between the wrong action and the person who commits it. He felt that performing miracles was like selling morality, it was like exposing oneself in public.
    The Buddha said that the expensive sandalwood bowl was insignificant. He insisted that the bhikkhus have no greed. We must also understand that when he censures the bhikkhu for displaying miracles for a minor gain, it doesn’t mean that he condoned miracles for bigger gains. He had summarily banned all miracles. If a bhikkhu acquired an expensive object by performing a miracle, it had no value for the bhikkhu. The bhikkhu’s only aim was to progress on the path of the Dhamma and to become enlightened. Because the sandalwood bowl, though expensive, didn’t figure in this scheme, it was negligible.
    The Buddha promulgated a monastic rule banning miracles. This leaves no doubt about his stand. He asked the bhikkhus to destroy the bowl. And he banned use of all bowls except iron and earthen. This shows his stringent opposition to miracles. Sant Tukaram says while rejecting miracles, “Kapaṭa kāhī ek; nene bhulāvaya lokā; Dāu nene jaḍibuṭī, camatkāra uṭhāuṭhī.” (It is fraudulent to deceive people; (By) using charms to display miracles.)

    REPLY
    1. चर्चा .....

      भारद्वाज के चमत्कार की सटीक प्रकृति में जाने के बिना, आइए हम यह समझें कि बुद्ध ने चमत्कारों को कितनी दृढ़ता और कितनी दृढ़ता से देखा। भारद्वाज को बताने के लिए वह जिन शब्दों का उपयोग करता है, वे इस मामले पर अपना मजबूत दृष्टिकोण व्यक्त करते हैं। उन्होंने भारद्वाज के अभिनय की तुलना ढीले चरित्र वाली महिला की कार्रवाई से की। इसके बाद भी उन्होंने महिला के प्रति अनादर नहीं दिखाया। वह उसे माँ (सचमुच माँ के लिंग में से एक) कहता है। वह गलत कार्य और इसे करने वाले व्यक्ति के बीच अंतर करता है। उन्होंने महसूस किया कि चमत्कार करना नैतिकता को बेचने जैसा था, यह सार्वजनिक रूप से खुद को उजागर करने जैसा था।
      बुद्ध ने कहा कि महंगा चंदन का कटोरा महत्वहीन था। उन्होंने जोर देकर कहा कि भिक्षुओं को कोई लालच नहीं है। हमें यह भी समझना चाहिए कि जब वह मामूली लाभ के लिए चमत्कार दिखाने के लिए भिक्खु को बंद कर देता है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि उसने बड़े लाभ के लिए चमत्कार की निंदा की है। उन्होंने संक्षेप में सभी चमत्कारों पर प्रतिबंध लगा दिया था। यदि किसी भिक्खु ने चमत्कार करके एक महंगी वस्तु प्राप्त कर ली, तो भिक्षु के लिए इसका कोई मूल्य नहीं था। भिक्खु का एकमात्र उद्देश्य धम्म के मार्ग पर आगे बढ़ना और प्रबुद्ध बनना था। चंदन का कटोरा, हालांकि महंगा, इस योजना में नहीं था, यह नगण्य था।
      बुद्ध ने चमत्कारों पर प्रतिबंध लगाने वाले एक मठ के शासन को बढ़ावा दिया। इससे उनके रुख पर कोई संदेह नहीं रह गया है। उन्होंने भिक्खुओं को कटोरा नष्ट करने के लिए कहा। और उसने लोहे और मिट्टी के अलावा सभी कटोरे के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया। यह चमत्कारों के प्रति उनके कड़े विरोध को दर्शाता है। संत तुकाराम कहते हैं कि चमत्कार को खारिज करते हुए, “कपाही का समय; नेने भुलावा लोका; दाऊ नेने जाइबुइ, कैमकटरा उधुहि। "(यह लोगों को धोखा देने के लिए कपटपूर्ण है; (द्वारा) चमत्कार प्रदर्शित करने के लिए छंदों का उपयोग करना।)

  4. Bhikkhus Too Rejected Miracles.....

    Once the Buddha was dwelling in Kalandakanivāpa of Rājagaha.
    At that time, the Buddha and the bhikkhu-Saṅgha had acquired great prestige. Ascetics from other sects were not revered much.
    A recluse named Susīma was staying in Rājagaha with a large entourage. The recluses in his retinue said to him, “Friend Susīma, become the Buddha’s disciple. Learn the Dhamma from him and teach it to us. Then we will teach the Dhamma to people and we will also get reverence and prestige.” He agreed and went to Ānanda, “I wish to accept the Dhamma and the Discipline of the Tathāgata.” Ānanda took him to the Buddha. He received the ‘going forth’ and higher ordination.
    At that time, many bhikkhus told the Buddha that they had achieved what they had aimed for, they had achieved their goal. Susīma heard it and went to them to ask them whether they really had said this to the Buddha. They said yes.
    He asked them, “Have you acquired miraculous powers? Do you become many from one and one from many? Do you manifest yourself and disappear at will? Do you go through a wall, a fortification or a mountain without being seen by anyone as if there is empty space? Do you enter earth as if you are entering water and walk on water as if you are walking on earth? Do you fly in the sky in sitting posture like a bird? Do you touch the sun and the moon with your hands? Do you control the brahmā realm with your body?”
    The bhikkhus answered ‘no’ to all his questions.
    Then he asked them, “But then… do you hear through spotless, pure, divine ear, words that are heavenly and human; words from close and from far?”
    They said no.
    Then he asked them whether they could read another person’s mind to see if he has greed, aversion, disenchantment, lack of hatred, etc.
    Again they said no.
    He asked them whether they could recollect their one, two, three… thousand… hundred thousand past lives… do you recollect who you were, what was your name, etc.
    Again, the answer was no.
    He asked whether he knew to which realms beings go after their death. They answered no.
    Then he asked them, “Do you transcend the peaceful states
    and touch the formless states beyond with your body?”
    They said no.
    “Then how come you declare to have achieved the goal and yet you have none of the miraculous powers?”
    They answered that they had become liberated through wisdom. He told them that he didn’t understand what they meant by liberation through wisdom. They said that whether you understand or not, we are liberated through wisdom.
    After this discussion with the bhikkhus, he went to the Buddha and gave him the report of this discussion. The Buddha said to him, “Susīma, one understands the Dhamma first and then attains nibbāna.”
    “Please explain in detail for I have not understood it.” “Whether or not you understand it, first one understands the
    Dhamma and then attains nibbāna.”
    Though the Buddha said this in the beginning, he went on to give a detailed exposition on the Dhamma.

    Discussion.....

    It is clear from the example of Susīma that some other sectarians were entering the Saṅgha for material benefits. Many people believe that if one gets supernatural powers then the life’s aim is achieved. The bhikkhus made it clear that they hadn’t attained such powers. This shows that the bhikkhus didn’t believe in miracles. This was the Buddha’s teaching to them. For them the important thing was to learn the Dhamma and attain nibbāna. It is most unfortunate that in spite of his clear stand against miracles, so many stories about his miracles were added later on.

    REPLY
    1. भिक्खुस ने भी खारिज कर दिया चमत्कार .....

      एक बार बुद्ध राजगृह के कलंदकानिवाप में निवास कर रहे थे।
      उस समय, बुद्ध और भिक्खु-सौग ने बहुत प्रतिष्ठा हासिल की थी। अन्य संप्रदायों के तपस्वियों को ज्यादा श्रद्धेय नहीं बताया गया।
      सुसीमा नाम का एक वैरागी रजाघर में एक बड़े दल के साथ रह रहा था। उनके निष्कर्ष में शामिल निष्कर्षों ने उनसे कहा, "मित्र सुषमा, बुद्ध की शिष्या बनें। उससे धम्म सीखो और उसे हमें सिखाओ। तब हम लोगों को धम्म सिखाएंगे और हम भी श्रद्धा और प्रतिष्ठा प्राप्त करेंगे। "वह सहमत हुए और आनंदा के पास गए," मैं धम्म को स्वीकार करना चाहता हूं और तपगता के अनुशासन को स्वीकार करना चाहता हूं। "आनंद उन्हें बुद्ध के पास ले गए। उन्होंने 'आगे बढ़ने' और उच्च समन्वय प्राप्त किया।
      उस समय, कई भिक्खुओं ने बुद्ध से कहा कि उन्होंने जो कुछ हासिल किया था, उसे हासिल किया था, उन्होंने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया था। सुसीमा ने इसे सुना और उनसे यह पूछने के लिए गई कि क्या उन्होंने वास्तव में बुद्ध से ऐसा कहा है। उन्होंने हां कह दिया।
      उसने उनसे पूछा, “क्या तुमने चमत्कारी शक्तियाँ प्राप्त कर ली हैं? क्या आप एक से कई और कई से एक हो जाते हैं? क्या आप स्वयं को प्रकट करते हैं और इच्छाशक्ति में गायब हो जाते हैं? क्या आप किसी दीवार, किलेबंदी या पहाड़ से गुजरते हैं, जो किसी के द्वारा देखा नहीं जाता है जैसे कि खाली जगह है? क्या आप पृथ्वी पर प्रवेश करते हैं जैसे कि आप पानी में प्रवेश कर रहे हैं और पानी पर चल रहे हैं जैसे कि आप पृथ्वी पर चल रहे हैं? क्या आप पक्षी की तरह बैठे आसन में आकाश में उड़ते हैं? क्या आप अपने हाथों से सूर्य और चंद्रमा को स्पर्श करते हैं? क्या आप अपने शरीर के साथ ब्रह्म क्षेत्र को नियंत्रित करते हैं? "
      भीखुओं ने उनके सभी सवालों के जवाब 'नहीं' दिए।
      तब उसने उनसे पूछा, "लेकिन फिर ... क्या आप बेदाग, शुद्ध, दिव्य कान, ऐसे शब्द सुनते हैं जो स्वर्गीय और मानवीय हैं; पास से और दूर से शब्द? "
      उन्होंने कहा नहीं।
      फिर उसने उनसे पूछा कि क्या वे किसी अन्य व्यक्ति के दिमाग को देख सकते हैं कि क्या उसके पास लालच, घृणा, असहमति, घृणा का अभाव, आदि हैं।
      फिर से उन्होंने कहा कि नहीं।
      उसने उनसे पूछा कि क्या वे अपने एक, दो, तीन… हजार… सौ हजार पिछले जन्मों को याद कर सकते हैं… क्या आप याद करते हैं कि आप कौन थे, आपका नाम क्या था, आदि।
      फिर, जवाब नहीं था।
      उसने पूछा कि क्या वह जानता है कि उनकी मृत्यु के बाद कौन से प्राणी जाते हैं। उन्होंने उत्तर दिया नहीं।
      फिर उसने उनसे पूछा, '' क्या आप शांतिपूर्ण राज्यों को पार करते हैं
      और अपने शरीर से परे निराकार राज्यों को स्पर्श करें? "
      उन्होंने कहा नहीं।
      "फिर आप कैसे घोषित करते हैं कि आपने लक्ष्य हासिल कर लिया है और फिर भी आपके पास कोई चमत्कारी शक्ति नहीं है?"
      उन्होंने उत्तर दिया कि वे ज्ञान के माध्यम से मुक्त हो गए थे। उन्होंने उन्हें बताया कि उन्हें समझ में नहीं आया कि ज्ञान के माध्यम से मुक्ति का क्या मतलब है। उन्होंने कहा कि आप समझें या नहीं, हम ज्ञान के माध्यम से मुक्त होते हैं।
      भिक्खुओं से इस चर्चा के बाद, वह बुद्ध के पास गए और उन्हें इस चर्चा की रिपोर्ट दी। बुद्ध ने उनसे कहा, "सुषमा, पहले धम्म को समझती है और फिर निबाहना प्राप्त करती है।"
      "कृपया विस्तार से बताएं कि मैंने इसे नहीं समझा है।" "आप इसे समझते हैं या नहीं, पहले कोई समझता है।"
      धम्म और उसके बाद निब्ना प्राप्त करता है। ”
      यद्यपि बुद्ध ने शुरुआत में यह कहा था, उन्होंने धम्म पर एक विस्तृत विवरण दिया।

      चर्चा .....

      सुसमा के उदाहरण से स्पष्ट है कि कुछ अन्य संप्रदाय भौतिक लाभ के लिए सौगात में प्रवेश कर रहे थे। बहुत से लोग मानते हैं कि अगर किसी को अलौकिक शक्तियां मिल जाती हैं तो जीवन का लक्ष्य हासिल हो जाता है। भीखुओं ने यह स्पष्ट कर दिया कि उन्हें ऐसी शक्तियाँ प्राप्त नहीं हैं। इससे पता चलता है कि भिक्खुओं को चमत्कारों में विश्वास नहीं था। यह उनके लिए बुद्ध का उपदेश था। उनके लिए धम्म सीखना और निबटना प्राप्त करना महत्वपूर्ण था। यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है कि चमत्कारों के खिलाफ उनके स्पष्ट रुख के बावजूद, उनके चमत्कारों के बारे में कई कहानियाँ बाद में जोड़ी गईं।

  5. Rejecting Bad Omens.....

    While trying to remove blind beliefs in society, the Buddha had a flexible attitude in his work of social reform. In this regard, an incident in Cūḷavagga in the Book of Discipline (Vinaya Piṭaka) is significant.
    Once the Buddha sneezed while giving a Dhamma talk. Then the bhikkhus said loudly, “May the Tathāgata live! May the Sugata live!” This disrupted the discourse.
    He asked the bhikkhus, “Is your saying ’May you live long,’
    when someone sneezes going to affect the person’s lifespan?”
    “No, bhante.” 
    Then the Buddha laid down a rule that one should not say ‘May you live long,’ when someone sneezes.
    At that time if a bhikkhu sneezed, the people would say, “Bhante, may you live long.” In response the bhikkhu would acknowledge it by saying, “May you too live long,” and thus express his goodwill. But after the incident above, the bhikkhus stopped saying it.
    Then people started saying, “Why don’t these samaṇas, sons of the Sākyan, say anything when we say ‘May you live long, bhante,’ to them?”
    The bhikkhus reported it to the Buddha who said to them, “The laypeople like good wishes. Therefore, when they say ‘May you live long, bhante,’ I give you permission to respond with ‘May you live long,’ to them.”

    Discussion.....

    Sneezing is considered a bad omen even in modern India. The Buddha had said more than twenty-five centuries ago that there was no relation between sneezing and any untoward event. Though he was firm about this and had made a rule about it, he didn’t want the bhikkhus to hurt the sentiments of laypeople while living in the society. Rather than shocking them with dry rational thought, he tried gradual change. He knew that in the field of social reform, undue eagerness and impatience had no place. One had to be restrained and skillful.

    REPLY
    1. अपशकुन को खारिज करते हुए .....

      समाज में अंध विश्वासों को दूर करने की कोशिश करते हुए, बुद्ध ने सामाजिक सुधार के अपने काम में एक लचीला रवैया रखा। इस संबंध में, अनुशासन की पुस्तक (विनया पिआका) में कॉवागा में एक घटना महत्वपूर्ण है।
      एक बार धम्म वार्ता देते हुए बुद्ध ने छींक दी। तब भीखुओं ने जोर से कहा, '' तपागता जी सकता है! सुगाता जी सकते हैं! ”इससे प्रवचन बाधित हुआ।
      उन्होंने भिक्खुओं से पूछा, "क्या आपका कहना है 'क्या आप लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं,"
      जब कोई व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करने के लिए छींकता है? "
      "नहीं, भंते।"
      तब बुद्ध ने एक नियम रखा कि किसी को छींक आने पर यह नहीं कहना चाहिए कि 'क्या आप लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं।'
      उस समय अगर कोई भिक्खु छींकता है, तो लोग कहते हैं, "भंते, क्या तुम लंबे समय तक जीवित रह सकते हो।" जवाब में भिक्खु यह कहकर स्वीकार कर लेते हैं, "आप बहुत लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं," और इस तरह अपनी सद्भावना व्यक्त करते हैं। लेकिन ऊपर की घटना के बाद, भिक्खुओं ने यह कहना बंद कर दिया।
      तब लोग कहने लगे, "क्यों नहीं, ये लोग, शाक्य के पुत्र, जब हम कहते हैं कि कुछ भी कहो, क्या आप लंबे, भंते, उनके लिए जीते हैं?"
      भिक्खुओं ने इसे बुद्ध को बताया जिन्होंने उनसे कहा, “लोगों को शुभकामनाएं पसंद हैं। इसलिए, जब वे कहते हैं, क्या आप लंबे समय तक रह सकते हैं, भंते, 'मैं आपको to मई लंबे समय तक जीने के साथ जवाब देने की अनुमति देता हूं, उनके लिए।'

      चर्चा .....

      आधुनिक भारत में भी छींक को एक बुरा शगुन माना जाता है। बुद्ध ने पच्चीस सदियों पहले कहा था कि छींकने और किसी भी अप्रिय घटना के बीच कोई संबंध नहीं था। हालाँकि वह इस बारे में दृढ़ था और उसने इस बारे में एक नियम बना लिया था, लेकिन वह नहीं चाहता था कि भिखारी समाज में रहने के दौरान आम लोगों की भावनाओं को आहत करें। शुष्क तर्कसंगत सोच के साथ उन्हें चौंकाने के बजाय, उन्होंने क्रमिक परिवर्तन की कोशिश की। वह जानता था कि सामाजिक सुधार के क्षेत्र में अनुचित उत्सुकता और अधीरता का कोई स्थान नहीं है। एक को संयमित और निपुण होना था।

  6. The Buddha Rejected Astrology.....

    The Buddha took a balanced stand about many blind beliefs. In this regard, we should study the first sutta of the Long Discourses, Brahmajāla Sutta.
    Laypeople used to praise the Buddha for his various qualities. This sutta gives details of such qualities. In each section there is a long list of specific blind beliefs in the society and those who used them to earn a livelihood. The Buddha made it clear that he didn’t believe in any of them. Let us look at some of those blind beliefs.
    At the beginning of each section, the Buddha tells the bhikkhus, “Bhikkhus, some samaṇas and brāhmaṇas eat almsfood offered with devotion by laypeople and survive through debased arts and wrong means of livelihood.” Then he goes on to list the debased arts and low tricks and tells them, “Samaṇa Gotama refrains from such debased arts and wrong means of livelihood. This is the reason laypeople praise the Tathāgata.”
    Refraining from these blind beliefs and debased trickery is called a minor morality of the Buddha. This was not a major achievement according to the Buddha but a simple and elementary thing that should be part of the lifestyle of an ascetic.
    The sutta shows the tricks that the astrologers, shamans, magicians, and sacrifice performers (yājnikas) used for livelihood. The list is long. Let us look at it in detail. Let us not think of this discussion as boring because it shows how the Buddha looked at them. Even modern man has not been able to get rid of many of these cobwebs in his intellect. We should know how firmly and yet easily the Buddha removed these cobwebs of intellect so that we become aware of his heritage.
    Some people predict the future by looking at a body part. Some give significance to the sudden happenings in nature. Some tell meanings of dreams. Some look at bodily marks and tell fortune. Sometimes, a rat chews household items; some look at such objects and explain its significance. Some perform various sacrifices (homas, yajñas). Since we have discussed this earlier, we won’t repeat it here.
    Some predict the future based on specific items, farm, snake, poison, scorpion, rat, birds or their sounds. Some claim that if one chants a particular mantra, arrow won’t pierce his body in a battle. Some people look at specific characteristics of precious stones, clothes, baton, weapon, sword, arrow, bow, woman, man, boy, girl, servants, elephants, horse, buffalo, cow, goat, sheep, rooster, etc.
    Some predict whether or not the king would leave the palace, whether another king would visit, which king would emerge victorious. Some look at the paths of sun, moon and stars and describe the effect of their deviations from their path. Some survive by looking for meteors, peculiar red lights on horizons, earthquakes, thundering clouds without rains, rising and setting of the sun and the moon, and divining their meaning. Some earn their livelihood by predicting future calamities, and epidemics by palmistry, numerology, etc. Some give advice on when to get engaged, what is the auspicious time to get married, which constellations are favorable for marriage, what to do to help someone or to hurt someone, and how to change the gender of the fetus in mother’s womb.
    Some claim to make someone tongue-tied using mantras, some make people deaf, some claim to make people lose use of their hand, some use mirrors etc. for planchet to communicate with the dead. Some invite invisible beings through the medium of maidens to ask them questions, some entreat gods, some worship a god or the sun to achieve something special, and some use specific head movements to request gods.
    Some make conditional pledges to gods and fulfill those pledges, some invite ghosts, some claim to make an impotent person potent, some try various physical actions such as putting oil in ears or putting kohl in eyes for miracles, and claim to cure incurable illnesses.
    The Buddha rejected all such fraudulent means of livelihood. He insisted that one must earn an honest livelihood. It is part of the Noble Eightfold Path taught by him.

    REPLY
    1. बुद्ध ने ज्योतिष को खारिज कर दिया ....।

      बुद्ध ने कई अंध विश्वासों के बारे में एक संतुलित रुख अपनाया। इस संबंध में, हमें लंबे प्रवचनों, ब्रह्मजल सूत्र के पहले सूक्त का अध्ययन करना चाहिए।
      लेपप लोग अपने विभिन्न गुणों के लिए बुद्ध की प्रशंसा करते थे। यह सूक्त ऐसे गुणों का विवरण देता है। प्रत्येक खंड में समाज में विशिष्ट अंध विश्वासों की लंबी सूची है और जो लोग आजीविका कमाने के लिए उनका उपयोग करते हैं। बुद्ध ने स्पष्ट किया कि वह उनमें से किसी पर भी विश्वास नहीं करता है। आइए हम उन कुछ अंध विश्वासों को देखें।
      प्रत्येक खंड की शुरुआत में, बुद्ध भिखुओं से कहते हैं, "भिक्खु, कुछ सामंत और ब्रह्मदेव, भिक्षुओं द्वारा भक्ति के साथ दी जाने वाली अलम्फफूड खाते हैं और विवादित कलाओं और आजीविका के गलत साधनों के माध्यम से जीवित रहते हैं।" ट्रिक्स और उन्हें बताता है, “समोआ गोतम इस तरह की बहस वाली कलाओं से बचता है और आजीविका का गलत साधन है। यही कारण है कि लेफ्टिनेंट तपागता की प्रशंसा करते हैं। ”
      इन अंध विश्वासों और दुर्बल प्रवंचना से बचना बुद्ध की छोटी नैतिकता कहलाती है। यह बुद्ध के अनुसार एक बड़ी उपलब्धि नहीं थी लेकिन एक सरल और प्राथमिक चीज थी जो एक तपस्वी की जीवन शैली का हिस्सा होनी चाहिए।
      सूत उन चालों को दिखाता है जो ज्योतिषी, शमां, जादूगर और बलिदान कलाकार (याज्ञिक) आजीविका के लिए इस्तेमाल करते हैं। सूची लंबी है। आइए हम इसे विस्तार से देखें। आइए हम इस चर्चा को उबाऊ न समझें क्योंकि इससे पता चलता है कि बुद्ध ने उन्हें कैसे देखा था। यहाँ तक कि आधुनिक मनुष्य भी अपनी बुद्धि में इनमें से बहुत से कोशों से छुटकारा नहीं पा सका है। हमें यह जानना चाहिए कि बुद्ध ने कितनी दृढ़ता से और फिर भी आसानी से बुद्धि के इन कोबवे को हटा दिया ताकि हम उनकी विरासत से अवगत हो सकें।

    2. कुछ लोग बॉडी पार्ट देखकर भविष्य की भविष्यवाणी करते हैं। कुछ प्रकृति में अचानक होने वाली घटनाओं को महत्व देते हैं। कुछ सपने के अर्थ बताते हैं। कुछ शारीरिक निशान देखते हैं और भाग्य को बताते हैं। कभी-कभी, एक चूहा घरेलू सामान चबाता है; कुछ ऐसी वस्तुओं को देखते हैं और इसके महत्व को समझाते हैं। कुछ लोग विभिन्न यज्ञ (होम, यज्ञ) करते हैं। चूंकि हमने पहले इस पर चर्चा की है, इसलिए हमने इसे यहां नहीं दोहराया।
      कुछ विशिष्ट वस्तुओं, खेत, सांप, जहर, बिच्छू, चूहे, पक्षियों या उनकी आवाज़ के आधार पर भविष्य की भविष्यवाणी करते हैं। कुछ का दावा है कि अगर कोई एक विशेष मंत्र का जप करता है, तो तीर उसके शरीर को लड़ाई में छेद नहीं सकता है। कुछ लोग कीमती पत्थरों, कपड़े, बैटन, हथियार, तलवार, तीर, धनुष, महिला, आदमी, लड़का, लड़की, नौकर, हाथी, घोड़ा, भैंस, गाय, बकरी, भेड़, मुर्गा, आदि की विशिष्ट विशेषताओं को देखते हैं।
      कुछ भविष्यवाणी करते हैं कि क्या राजा महल छोड़ देगा या नहीं, क्या कोई अन्य राजा यात्रा करेगा, जो राजा विजयी होगा। कुछ लोग सूर्य, चंद्रमा और सितारों के रास्तों को देखते हैं और अपने मार्ग से उनके विचलन के प्रभाव का वर्णन करते हैं। कुछ उल्काओं की तलाश में रहते हैं, क्षितिज पर भयानक लाल बत्तियाँ, भूकंप, बिना बारिश के बादलों की गड़गड़ाहट, उगते और सूरज और चंद्रमा की स्थापना, और उनके अर्थ को विभाजित करते हुए। कुछ लोग भविष्य में आने वाली विपत्तियों की भविष्यवाणी करके अपनी जीविका कमाते हैं, और हस्तरेखा विज्ञान, अंकशास्त्र इत्यादि द्वारा महामारी लगाते हैं, कुछ इस बात की सलाह देते हैं कि कब सगाई करनी है, शादी करने के लिए शुभ समय क्या है, कौन से नक्षत्र विवाह के लिए अनुकूल हैं, किसी की मदद करने के लिए क्या करना चाहिए। किसी को चोट पहुँचाना, और माँ के गर्भ में भ्रूण के लिंग को कैसे बदलना है।
      कुछ लोग मंत्रों का उपयोग करते हुए किसी को जीभ से बांधने का दावा करते हैं, कुछ लोगों को बहरा बनाते हैं, कुछ लोगों को अपने हाथ का उपयोग खोने का दावा करते हैं, कुछ का उपयोग दर्पण आदि के साथ मृतकों के साथ संवाद करने के लिए करते हैं। कुछ ने सवाल पूछने के लिए युवतियों के माध्यम से अदृश्य जीवों को आमंत्रित किया, कुछ ने देवता, कुछ ने कुछ विशेष हासिल करने के लिए एक भगवान या सूर्य की पूजा की, और कुछ देवताओं का अनुरोध करने के लिए विशिष्ट सिर आंदोलनों का उपयोग करते हैं।
      कुछ लोग देवताओं को सशर्त प्रतिज्ञाएँ देते हैं और उन प्रतिज्ञाओं को पूरा करते हैं, कुछ भूतों को आमंत्रित करते हैं, कुछ नपुंसक व्यक्ति को शक्तिशाली बनाने का दावा करते हैं, कुछ विभिन्न शारीरिक क्रियाओं की कोशिश करते हैं जैसे कि कानों में तेल डालना या चमत्कारों के लिए आँखों में कोहल लगाना और लाइलाज बीमारियों को ठीक करने का दावा करना।
      बुद्ध ने आजीविका के ऐसे सभी कपटपूर्ण तरीकों को अस्वीकार कर दिया। उन्होंने जोर देकर कहा कि एक ईमानदार आजीविका अर्जित करनी चाहिए। यह उनके द्वारा सिखाए गए नोबल आठ गुना पथ का हिस्सा है।

  7. Shameful That We Still Have These Blind Beliefs.....

    We still have many of the blind beliefs enumerated above to some extent, with some variations. Therefore, it is all the more surprising to look at the intellectual leap of the Tathāgata in his time. Not only is his advice on these matters true in principle today but the details are not far from today’s reality. Should we look at it as the perspicacity of the Buddha twenty-five centuries back or the mental frailty of those of us who are born twenty-five centuries later?

    REPLY
    1. शर्मनाक है कि हम अभी भी इन अंध विश्वासों .....

      हमारे पास अभी भी कई अंध विश्वासों के ऊपर कुछ हद तक, कुछ भिन्नताओं के साथ संलिप्त हैं। इसलिए, अपने समय में तपागता की बौद्धिक छलांग को देखना सभी को आश्चर्यचकित करता है। न केवल इन मामलों पर उनकी सलाह आज सिद्धांत रूप में सही है बल्कि विवरण आज की वास्तविकता से बहुत दूर नहीं हैं। क्या हमें इसे बुद्ध की पच्चीस शताब्दियों पहले की संज्ञा या हममें से उन पच्चीस शताब्दियों के बाद होने वाली मानसिक धोखाधड़ी के रूप में देखना चाहिए?

  8. This comment has been removed by the author.

    REPLY
  9. This comment has been removed by the author.

    REPLY
  10. Not by Charms…

    We know that the Buddha didn’t believe in charms. There is
    a sutta in the Numerical Discourses about it.
    Once the Buddha told bhikkhus, “Bhikkhus, it is impossible that one who has right view would want to be purified by kotuhalamaṅgala.” Kotuhalamaṅgala is superstition. Ānanda Kausalyayana translates the original Pali as, “It is impossible that a person who has right view would expect self-purification by good or bad omens.” Maṅgala here means something that one believes gives us what we desire.
    For example, thread, bead. etc. are used as charms. Kotuhala shows curiosity, eagerness, desire. Many follow blind faith in order to get what they want and to ward off perceived evil. People keep various lucky charms to protect themselves from any harm and to fulfill their wishes. They also feel that such lucky charms would destroy the impurities in their life and purify them.
    Each substance or thing has its own characteristics that works according to these characteristics. Nothing can break the law of cause and effect operating in nature to bring about a miracle. Therefore, the Buddha advised the practice of morality and wisdom for one’s welfare; and advised against the use of such charms.

    REPLY
    1. आकर्षण द्वारा नहीं…

      हम जानते हैं कि बुद्ध वर्णों में विश्वास नहीं करते थे। वहाँ है
      इसके बारे में न्यूमेरिकल डिस्कोर्स (अंगुठिका निकैया) में एक सूत्र।
      एक बार बुद्ध ने भिक्खुओं से कहा, "भीखू, यह असंभव है कि जिसके पास सही दृश्य है वह कोठुहलमागाला द्वारा शुद्ध किया जाना चाहेगा।" कोटूहलमागाला अंधविश्वास है। आनंद कौसल्यायन मूल पाली का अनुवाद करते हैं, "यह असंभव है कि जो व्यक्ति सही दृष्टिकोण रखता है, वह अच्छे या बुरे ओछेपन से आत्म-शुद्धि की उम्मीद करता है।" माओगला का अर्थ है कि कुछ ऐसा है जो हमें विश्वास दिलाता है कि हम जो चाहते हैं वह हमें देता है।
      उदाहरण के लिए, धागा, मनका। आदि का उपयोग आकर्षण के रूप में किया जाता है। कोटुहला जिज्ञासा, उत्सुकता, इच्छा को दर्शाता है। कई लोग अंध विश्वास का पालन करते हैं ताकि वे चाहते हैं और कथित बुराई को दूर कर सकें। लोग खुद को किसी भी नुकसान से बचाने और अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए विभिन्न भाग्यशाली आकर्षण रखते हैं। उन्हें यह भी लगता है कि इस तरह के भाग्यशाली आकर्षण उनके जीवन में अशुद्धियों को नष्ट करते हैं और उन्हें शुद्ध करते हैं।
      प्रत्येक पदार्थ या चीज की अपनी विशेषताएं होती हैं जो इन विशेषताओं के अनुसार काम करती हैं। कुछ भी नहीं चमत्कार के बारे में लाने के लिए प्रकृति में कारण और प्रभाव के कानून को तोड़ सकता है। इसलिए, बुद्ध ने एक के कल्याण के लिए नैतिकता और ज्ञान के अभ्यास की सलाह दी; और इस तरह के आकर्षण के उपयोग के खिलाफ सलाह दी।

  11. Livelihood by Astrology Was Unwholesome......

    We see in Sūcimukhī Sutta of the Connected Discourses that the Buddha’s followers like Sāriputta had rejected blind faith in false knowledge that deceived people.
    Once Sāriputta was living in Kalandakanivāpa in Rājagaha. After his alms round in Rājagaha he sat down to eat by the side of a wall. At that time, a wandering recluse named Sūcimukhī approached him and asked, “Samaṇa, why are you facing downward while eating?”
    He answered, “Sister, I am not facing downward.” “Samaṇa, are you facing upward and eating?”
    He answered, no.
    Then she asked him whether he was eating facing the four quarters or between the quarters. He said no to all questions.
    She said that he was saying no to all questions, how was he eating then? He answered, “Those who live by false learning; false means of divinations such as vatthuvijjā (vāstuvidyā, divinations based on buildings) and sounds of birds and animals to be facing down and eating.
    “Those who indulge in stargazing; look at the constellations in the sky to predict the future are said to be facing upward and eating.
    “Those who go on errands are said to eat while facing the four quarters.
    “Those who live by palmistry live by facing between the quarters.
    “I don’t live by such false learning. I go on alms round in the Dhamma way and live by the alms received in the Dhamma way.”

    Discussion
    Sāriputta has presented an important view here. He has differentiated between false learning where fraudulent things are done and true learning that brings real benefit in life. In vāstuvidyā, it is alleged that a particular place or direction is auspicious or inauspicious for construction, etc. In broader terms, it is a divining whether a particular substance or object is auspicious or not.
    Even today, particular sounds of birds and animals are considered auspicious and inauspicious. These sounds are used to predict future. Sounds of crows or owls are used or a bullock is used to predict the future.
    In nakkhattavijjā, the position of the stars and planets is used to predict the future.
    In angavijjā, the lines on palms and forehead, and the moles on the body are used to predict the future.
    Sāriputta says that these are false livelihoods. He says that
    he lives by the Dhamma and eats the alms food obtained the Dhamma way. The Noble Eightfold Path makes one discerning
    and balanced. It is constructive and benevolent.

    Why Oppose Yajñas?
    The Buddha’s opposition to yajñas (ritual sacrifices) wasn’t just negation of a tradition but it was a foundation or a guarantee of a new, pure social structure. His view wasn’t oppositional. His was a universe decorated with pure and fresh novelty.
    The Buddha gave his Dhamma the foundation of morality and objective truth. He gave the social structure an ethical and learned foundation of the Dhamma. His Dhamma was not a weapon of dominance. It was a guide for a wholesome living. It was a conduct for happy living. It was a sweet combination of ethics and objective wisdom.

    REPLY
    1. काल्पनिक ज्योतिष प्रकार अस्वीकृत

      हम सम्यक्त्व निकसे के सुसुमुखी सूक्त में देखते हैं कि सारिपुत्त जैसे बुद्ध के अनुयायियों ने लोगों को धोखा देने वाले झूठे ज्ञान में अंध विश्वास को खारिज कर दिया था।
      एक बार जब सरिगुप्ता कलजकानिवपा में रजागढ़ में रह रहे थे। रजागा में अपने भिक्षा-चक्र के बाद वह एक दीवार के किनारे खाना खाने बैठ गया। उस समय, शिमुखी नाम की एक भटकती हुई आत्मा ने उससे संपर्क किया और पूछा, "समाओ, तुम भोजन करते समय नीचे की ओर क्यों आ रहे हो?"
      उन्होंने उत्तर दिया, "बहन, मैं नीचे की ओर नहीं हूं।" "समाओ, क्या आप ऊपर की ओर मुंह करके भोजन कर रहे हैं?"
      उसने जवाब दिया, नहीं।
      फिर उसने उससे पूछा कि क्या वह चार तिमाहियों का सामना कर रहा है या तिमाहियों के बीच। उन्होंने सभी सवालों के जवाब नहीं दिए।
      उसने कहा कि वह सभी सवालों के लिए नहीं कह रही थी, फिर वह कैसे खा रही थी? उसने उत्तर दिया, “जो लोग झूठी शिक्षा से जीते हैं; वात्थुविज्ज (वासुविद्या, भवनों पर आधारित विभाजन) और पक्षियों और जानवरों की आवाज़ का सामना करना पड़ रहा है और खाने के लिए विभाजन के झूठे साधन।
      “जो लोग घूर रहे हैं; भविष्य की भविष्यवाणी करने के लिए आकाश में नक्षत्रों को देखें, जो ऊपर और खाने का सामना कर रहे हैं।
      “जो लोग चौपायों का सामना करते हुए खाने के लिए जाते हैं।
      “जो लोग हस्तरेखा विज्ञान द्वारा जीते हैं वे क्वार्टर के बीच में रहते हैं।
      "मैं इस तरह की झूठी सीख से नहीं बचता। मैं धम्म मार्ग में भिक्षा पर जाता हूं और धम्म मार्ग में प्राप्त भिक्षा से जीवित रहता हूं। "

    2. विचार-विमर्श
      सारिपुत्त ने यहाँ एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। उन्होंने झूठी शिक्षा के बीच विभेद किया है जहाँ धोखाधड़ी वाली चीजें की जाती हैं और सच्ची शिक्षा जो जीवन में वास्तविक लाभ लाती है। वासुदेवता में, यह आरोप लगाया जाता है कि एक विशेष स्थान या दिशा निर्माण, आदि के लिए शुभ या अशुभ है। व्यापक शब्दों में, यह एक विभाजन है कि कोई विशेष पदार्थ या वस्तु शुभ है या नहीं।
      आज भी, पक्षियों और जानवरों की विशेष ध्वनियों को शुभ और अशुभ माना जाता है। इन ध्वनियों का उपयोग भविष्य की भविष्यवाणी करने के लिए किया जाता है। कौवे या उल्लू की आवाज़ का उपयोग किया जाता है या भविष्य की भविष्यवाणी करने के लिए एक बैल का उपयोग किया जाता है।
      नक्काश्तविजय में, सितारों और ग्रहों की स्थिति का उपयोग भविष्य की भविष्यवाणी करने के लिए किया जाता है।
      एंजवीजा में, हथेलियों और माथे पर रेखाएं और शरीर पर तिलों का उपयोग भविष्य की भविष्यवाणी करने के लिए किया जाता है।
      श्रीपुत्र कहते हैं कि ये झूठी आजीविका हैं। वह ऐसा कहता है
      वह धम्म से रहता है और भिक्षा प्राप्त करता है। नोबल आठ गुना पथ एक समझदार बनाता है
      और संतुलित। यह रचनात्मक और परोपकारी है।

      यज्ञों का विरोध क्यों?
      यज्ञों (अनुष्ठान यज्ञों) के लिए बुद्ध का विरोध केवल एक परंपरा की उपेक्षा नहीं थी, बल्कि यह एक नई, शुद्ध सामाजिक संरचना की नींव या गारंटी थी। उनका विचार विरोधी नहीं था। उनका ब्रह्माण्ड शुद्ध और ताज़ा नवीनता से सजा हुआ था।
      बुद्ध ने अपने धम्म को नैतिकता और उद्देश्य सत्य की नींव दी। उन्होंने सामाजिक संरचना को धम्म की नैतिक और सीखी हुई नींव दी। उनका धम्म प्रभुत्व का हथियार नहीं था। यह एक संपूर्ण जीवन जीने के लिए एक मार्गदर्शक था। यह खुशहाल जीवन जीने का एक आचरण था। यह नैतिकता और उद्देश्य ज्ञान का एक मधुर संयोजन था।

  12. १:- बुद्ध के टूटे दांत की पूजा-

    Very foolish man, written in the name of Kartik Aiyar, you are really insane. After the Buddha's death, their bones were erected and Chaitya was built on each side. What is worshiping Buddha Dhamma? You do not know that. It is in your religion that 'worshiping is to fulfill my wish and I shall give you these things', not Buddha Dhamma. Worshiping Buddha Dhamma means reading of Buddha Vandana, Panchsheel etc. There is no connection between giving and taking, there is no connection anywhere, it should be remembered!

    REPLY
  13. २:- बौद्धों का स्वर्ग और मैत्रेय बुद्ध की मूर्तिपूजा-

    Do you not know that there is no place in heaven, hell, soul and God in Buddhism? You do not even know that there is no idol worship in Buddha religion; before idol worshipers take life in idols, there is no such thing done in the Buddhism. The idol in Buddhism is only considered to be the idol, it is not considered to be alive to the idol.

    REPLY
  14. ३:- बुद्ध के पांव का चमत्कारी चिह्न-
    This is a fake rumor spread by the local people, that's right to say.

    ४:- बुद्ध के पूर्वजन्म की बातें-
    ५- गांधार देश के वर्णन कहते हुये कहता है कि यहां बुद्धदेव ने अपने पिछले जन्म में दूसरों के कल्याण के लिये नेत्रदान किया था। इस खुशी में उनके अनुयायियों ने वहां भी स्तूप बना दिया।

    Buddha did not believe in past birth and rebirth.

    REPLY
  15. ६- छेदितमस्तक बुद्ध
    False rumor

    ७:- भीख के कटोरे की पूजा!
    Vedic religion worship and Buddhism worship can not be compared.
    In the worship of Vedic religion business of give and take (trade), 
    it does not happen in Buddhism.

    REPLY
  16. ८:- बुद्ध के सर की हड्डी!
    ९:- एक हीलो देश में फाहियान पहुंचा जहां पर एक "नगरक्षेत्र" नामक स्थान पर बुद्ध कि मूर्ति है। वहां पर मूर्ति चोकी न हो जाये इसलिये राजवंश के ८ खास आदमी चुनकर रखे गये हैं।
    False things told by the local people to Fahiyan.


    REPLY
  17. परा-प्रकृति तथा चमत्कार में विश्वास रखना अधर्म है। 

    जब भी कोई घटना घटती है,
    मानव हमेशा यह जानना चाहता है कि यह कैसे हुआ है, क्या है
    इसका कारण है।
    कभी-कभी कारण और प्रभाव इतने निकट होते हैं
    और इतने करीब कि इसका हिसाब देना मुश्किल नहीं है
    घटना की घटना।
    लेकिन अक्सर-बार प्रभाव इतनी दूर है
    प्रभाव का कारण जवाबदेह नहीं है। जाहिरा तौर पर
    ऐसा प्रतीत होता है कि इसका कोई कारण नहीं है।
    फिर सवाल उठता है: यह घटना कैसी है
    हुआ?
    सबसे आम उत्तर यह है कि की घटना
    घटना कुछ अलौकिक कारण के कारण है
    जिसे अक्सर चमत्कार कहा जाता है।
    बुद्ध के पूर्ववर्तियों ने बहुत भिन्नता दी
    इस सवाल का जवाब।
    पकुद कच्चान ने इस बात से इनकार किया कि कोई कारण था
    हर घटना के लिए। घटनाक्रम, उन्होंने कहा, स्वतंत्र रूप से हुआ।
    मखली घोषाल ने स्वीकार किया कि एक घटना होनी चाहिए
    एक कारण। लेकिन उन्होंने उपदेश दिया कि इसका कारण नहीं बनना है
    मानव एजेंसी में पाया जाता है, लेकिन प्रकृति में खोजा जाना है,
    आवश्यकता, चीजों के निहित नियम, पूर्वाभास या
    पसन्द।
    बुद्ध ने इन सिद्धांतों को निरस्त कर दिया। वह
    बनाए रखा है कि न केवल हर घटना एक कारण है, लेकिन
    कारण कुछ मानव क्रिया या प्राकृतिक का परिणाम है
    कानून।
    समय के सिद्धांत के खिलाफ उनका विवाद,
    प्रकृति, आवश्यकता, आदि, घटना का कारण है
    एक घटना के, यह था।
    यदि समय, प्रकृति, आवश्यकता, आदि एकमात्र कारण हो
    एक घटना की घटना के बाद, फिर हम कौन हैं?
    क्या मनुष्य केवल समय के हाथों में एक कठपुतली है,
    प्रकृति, संभावना, देवता, भाग्य, आवश्यकता?
    यदि वह है तो मनुष्य के अस्तित्व का क्या उपयोग है
    खाली नहीं ? यदि वह मनुष्य की बुद्धिमत्ता का उपयोग करता है तो क्या होगा?
    अलौकिक कारणों में विश्वास करना जारी रखता है?
    यदि मनुष्य स्वतंत्र है, तो प्रत्येक घटना अवश्य होनी चाहिए
    मनुष्य की क्रिया या प्रकृति के कार्य का परिणाम क्या आप वहां मौजूद हैं
    ऐसी कोई भी घटना नहीं हो सकती जो इसके मूल में अलौकिक हो।
    यह हो सकता है कि मनुष्य को खोजने में सक्षम नहीं है
    किसी घटना के घटित होने का वास्तविक कारण। लेकिन अगर उसके पास है
    बुद्धि उसे खोजने के लिए एक दिन बाध्य है।
    बुद्ध को अलौकिकता का प्रतिकार करने में
    तीन वस्तुएं थीं।
    मनुष्य को मार्ग पर ले जाने के लिए उसकी पहली वस्तु थी
    बुद्धिवाद का।
    उनकी दूसरी वस्तु मनुष्य को अंदर जाने के लिए स्वतंत्र करना था
    सत्य की खोज।
    उनकी तीसरी वस्तु सबसे शक्तिशाली को हटाना था
    अंधविश्वास का स्रोत, जिसका परिणाम हत्या करना है
    जांच की भावना।
    इसे कम्मा या कारण का नियम कहा जाता है।
    काममा और कारण का यह सिद्धांत है
    बौद्ध धर्म में सबसे केंद्रीय सिद्धांत। यह उपदेश देता है
    बुद्धिवाद और बौद्ध धर्म कुछ नहीं तो नहीं
    बुद्धिवाद।
    इसीलिए परा-प्रकृति तथा चमत्कार में विश्वास रखना अधर्म है। 

    REPLY
  18. DR. BABASAHEB AMBEDKAR WRITINGS AND SPEECHES BOOKS PUBLISHED BY GOVERNMENT OF INDIA. ALL 21 HINDI BOOKS ARE AVAILABLE HERE IN PDF FORMAT: PLEASE CLICK OR COPY AND PASTE IN BROWSER, THE LINK GIVEN BELOW: 

    http://velivada.com/2017/05/01/pdf-21-volumes-of-dr-ambedkar-books-in-hindi/

    REPLY
  19. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर लिखित: FREE eBOOKS

    PLEASE CLICK OR COPY AND PASTE IN BROWSER, THE LINK GIVEN BELOW: 

    1.BUDDHA AND HIS DHAMMA (ENGLISH)

    http://ftp.budaedu.org/ebooks/pdf/EN079.pdf

    2.बुद्ध और उनका धर्म (हिंदी)

    http://ftp.budaedu.org/ebooks/pdf/IN012.pdf

    3.बुद्ध आणि त्यांचा धम्म (मराठी)

    http://ftp.budaedu.org/ebooks/pdf/IN013.pdf

    REPLY
  20. This comment has been removed by the author.

    REPLY
  21. DR. RAJENDRA KUMBHAR, M.Sc., Ph.D (PHYSICALCHEMISTRY), M.A. (MARATHI), SANSKRIT AND URDU SCHOLOR, PRINCIPAL JAYSINGPUR COLLEGE, JAYSINGPUR, DISTT. KOLHAPUR (MAHARASHTRA) INTERVIEW BY DR. RAVINDRA SHRAWASTI:

    PART-1 (धर्म और भाषा के नाम पर देश में भ्रान्ति फैलाई जा रही है)

    https://www.youtube.com/watch?v=m1tSJX7uJuA

    PART-2 (हमारे गुलामी का कारन पुराण है)

    https://www.youtube.com/watch?v=m1tSJX7uJuA&t=5s

    PART-3 (ब्राह्मण जाति नहीं है वो अपने आप में एक वैदिक धर्म है)

    https://www.youtube.com/watch?v=76T-X9jao1s

    PART-4 (सवाल पूछने की सभ्यता बनानी होगी)

    https://www.youtube.com/watch?v=mlOnkHE-Xe0

    PART-5 (हिन्दू धर्म के नाम पर जो शोषण चल रहा है उसका आधार भय है)

    https://www.youtube.com/watch?v=ygGJqe_ulJY

    PART-6 (मूलनिवासियों की सभ्यता है)

    https://www.youtube.com/watch?v=5EpnK-ZL-Fc

    PART-7 (इस देश को फासिज़्म के इस धोके से बाहर निकालो)

    https://www.youtube.com/watch?v=WnyPqq8mCjs

    .................................................................................

    REPLY
  22. बौद्ध धर्म : एक बुद्धिवादी अध्ययन लेखक. डॉ. भदन्त आनंद कौसल्यायन 

    http://ftp.budaedu.org/ebooks/pdf/IN004.pdf

    REPLY
  23. 'बौद्ध धर्म का सार' मूल अंग्रेजी लेखक पी. लक्ष्मी नरसू, हिंदी अनुवादक डॉ. भदन्त आनंद कौसल्यायन 

    http://ftp.budaedu.org/ebooks/pdf/IN020.pdf

    REPLY
  24. LIGHT OF ASIA, SIR EDWARD ARNOLD (HINDI)

    http://ftp.budaedu.org/ebooks/pdf/IN064.pdf

    REPLY
  25. BUDDHA AUR UNAKE DHAMMA KA BHAVISHYA, DR. AMBEDKAR (HINDI)

    http://ftp.budaedu.org/ebooks/pdf/IN038.pdf

    REPLY
  26. #1.1 गौतम बुद्ध ऐसे है जैसे हिमाच्छादित हिमालय || OSHO Hindi Talk Pravachan on Buddha's Dhamma Pada

    https://www.youtube.com/watch?v=2zS5_GG3fms&t=1472s

    REPLY
  27. READ AND BECOME RATIONAL:

    https://ia800406.us.archive.org/1/items/KhattarKaka-Hindi-HariMohanJha/khattar-kaka-HINDI.pdf

    https://www.goatheist.in/2017/06/why-i-am-atheist-bhagat-singh.html

    http://www.hindisamay.com/e-content/Bharat%20ke%20pakhyat%20nastik.pdf

    REPLY
    1. https://www.marxists.org/hindi/bhagat-singh/1931/main-nastik-kyon-hoon.htm

  28. 😆😆🤪😜 jawab dene ki bajaay bechara vikash idhar udhar ki baate karne laga 
    Agar tripitak me milawat hui hai to saabit karo tumhaare kah dene se thodi maana jayega

    REPLY


Comments

Popular posts from this blog

Who Is Avalokiteshvara?

भीमराव ने तो बदल डाला इतिहास भारत का सारा

अंगुत्तरनिकाय